हर समय सोचता हूँ
कि जीवन के
इन प्रश्नों के उत्तर
कहां से लाऊं?
और समय के पथ पर
उभरने वाली शंकाओं
की उलझन को
कैसे सुलझाऊं
हर क़दम पर एक प्रश्न है
और हर मोड़ पर एक शंका
उभरती है
अपने अनबूझे शब्दों से
उनकी निष्कृति ढूढता हूँ
पर मिलती नहीं
हर प्रश्न एक चोट
और हर शंका एक घाव
देती है
हर प्रश्न के बहुत सरे उत्तर
और हर उत्तर के साथ
ढेर सारी शंकाएं
और मैं
इन प्रश्नों और शंकाओं में
डूबा जता हूँ
और अन्त में
खड़ा हो जता हूँ मैं भी
अपने ही समक्ष
एक प्रश्न-चिन्ह सा.