हर सुबह लाल चादर जो बिछ जाती है,
पथ के दूषण पर पर्दा पड़ जाता है!
मन की अवनी को चित्राम्बर कर दे,
जिस पर तू किरण-चरण धरता आता है!
हर सुबह लाल चादर जो बिछ जाती है,
पथ के दूषण पर पर्दा पड़ जाता है!
मन की अवनी को चित्राम्बर कर दे,
जिस पर तू किरण-चरण धरता आता है!