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हलधर सौं कहि ग्वालि सुनायौ / सूरदास

हलधर सौं कहि ग्वालि सुनायौ सूरदास श्रीकृष्णबाल-माधुरी राग सारंग

हलधर सौं कहि ग्वालि सुनायौ ।
प्रातहि तैं तुम्हरौ लघु भैया, जसुमति ऊखल बाँधि लगायौ ॥
काहू के लरिकहि हरि मार्‌यौ, भोरहि आनि तिनहिं गुहरायौ ।
तबही तैं बाँधे हरि बैठे, सो तुमकौं आनि जनायौ ॥
हम बरजी बरज्यौ नहिं मानति, सुनतहिं बल आतुर ह्वै धायौ ।
सूर स्याम बैठे ऊखल लगि, माता उर-तनु अतिहिं त्रसायौ ॥

भावार्थ :-- (किसी) गोपी ने श्रीबलराम से यह बात कह सुनायी है । श्याम ने किसी के लड़के को मारा था, सबेरे ही आकर उसने पुकार की, तभी से मोहन बँधे बैठे हैं - यह बात हमने आकर तुम्हें बता दी । हमने तो बहुत रोका, किंतु (व्रजरानी) हमारा रोकना मानती नहीं हैं ।' यह सुनते ही बलराम जी आतुरतापूर्वक दौड़ पड़े । सूरदास जी कहते हैं (उन्होंने देखा) कि श्यामसुन्दर ऊखल से सटे बैठे हैं, माता ने उनके शरीर को अत्यन्त पीड़ित तथा हृदय को बहुत भयभीत कर दिया है ।