एक
हवा पहाड़ी झरने की झनकार हो गई
जिस तक पहुँची उसको वह स्वीकार हो गई
दो
हवा कठिन सरकार हो गई
चल न सकी वह, भार हो गई
रचनाकाल: १६-०७-१९६१
एक
हवा पहाड़ी झरने की झनकार हो गई
जिस तक पहुँची उसको वह स्वीकार हो गई
दो
हवा कठिन सरकार हो गई
चल न सकी वह, भार हो गई
रचनाकाल: १६-०७-१९६१