जब जाड़े की ऋतु आती।
बरखा बूंदे बरसाती॥
करती सब को ट्रस्ट हवा।
फिरती है अलमस्त हवा॥
गर्मी में थक जाती है।
कभी-कभी रुक जाती है॥
उमस बढ़ाती व्यस्त हवा।
कर देती तब त्रस्त हवा॥
जब जाड़े की ऋतु आती।
बरखा बूंदे बरसाती॥
करती सब को ट्रस्ट हवा।
फिरती है अलमस्त हवा॥
गर्मी में थक जाती है।
कभी-कभी रुक जाती है॥
उमस बढ़ाती व्यस्त हवा।
कर देती तब त्रस्त हवा॥