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हवा ई हवा / अरुण हरलीवाल

इतराइल, महुआइल बिल्कुल
बउराइल-बउराइल हे।
लगइ, आज ई हवा गाँव-घर
हम्मर होके आइल हे।

नया फसिल के अगुआनी में
मानर डिमकइत होतइ;
ओकरे लय पर तोहर हाथ में
कँगना खनकइत होतइ।
उहाँ चलइत हऽ तूँ अँगना में,
एजगा झुनकइत पायल हे।

आमबाग में मीठा-मीठा
माँजर महकइत होतइ।
अउ चुहवन के जोड़ा गोहुम-
खेत में बहकइत होतइ।
हमर साँस में देह-गन्ह, भल!
तोहर आन समाइल हे।