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हवा के पखेरू / रघुवंश मणि

मुझे पंछी पसन्द हैं

हवा में उड़ते हुए पंछी
परवाज के लिए पाँव खींचे
गरदन आगे बढ़ाए हुए
ऊॅंचाइयों को नापते
जिनकी आँखों में सूरज की रौशनी
खेतों की फ़सलें
और जंगल का गहरा हरापन है
मुझे ऐसे पंछी पसन्द हैं।

मुझे वे सारे रंग पसन्द हैं
जो उनकी आँखों में हैं
उनके सपनों में हैं
उनकी आँखों के सपनों में हैं

मुझे वे सारे स्वाद पसन्द हैं
जिनके लिए वे दूर-दूर तक उड़ानें भरते हैं
एक बाग से दूसरे बाग तक
एक जंगल से दूसरे जंगल तक
स्वाद उनकी सहज इच्छाओं में बसे
खटलुस, मीठे, कर्छ, कसैले
मासूम और पगले
सारे के सारे स्वाद पसन्द हैं

मुझे वे पेड़ पसन्द हैं
जिन पर वे बसते हैं
और बसाते हैं
तिनकों के बसेरे
अजब-गजब की कलाकारी करते
हैरत में डालने वाले बसेरे
गोल, लम्बोतरे, सीधे, तिरछे
डालियों में फॅंसे और लटके
श्रम और कला के ताने बाने में
गुँथे-बिंधे घरौंदे

मुझे वे हरियाले पेड़ पसन्द हैं
मुझे वे कलाकारी घरौंदे पसन्द हैं।

मगर मुझे पिंजरों में बंद परिन्दे बिलकुल पसन्द नहीं
पिंजरे चाहे कितने भी सुन्दर क्यों न हों
लोहे, सोने, ताम्बे या चाहे किसी और धातु के ही बने
बड़े से बड़े या छोटे से छोटे
मोटे तारों वाले या पतले
बड़े दरवाज़ों वाले या छोटे
मुझे पिंजरे बिल्कुल-बिल्कुल पसन्द नहीं
मुझे पिंजरों में बंद परिन्दे बिल्कुल पसन्द नहीं

मगर वे कहते हैं
पंछी पिजरों में ही सुरक्षित हैं
और बाहर बहुत से ख़तरे हैं

वे बहेलियों के जाल में फॅंस सकते हैं
उन्हें गोली मार सकते हैं शिकारी
उनके साथ बलात्कार हो सकता है
उनकी गरदनें मरोड़ सकते हैं परकटवे

वैसे भी मौसम बहुत ख़राब है
लोगों की निग़ाहें ख़राब हैं
हवा ख़राब है, पानी ख़राब है
पता नहीं कौन सी हवा
उनके लिए ज़हर बन जाय
पता नहीं कौन सा पानी पीकर
वे तुरंत सुलंठ जाएँ
पंख कड़े हो जाएँ
मुँह खुला रह जाए
और ऑंखें फटी...

इसलिए वे कहते हैं इसीलिए
उन्हें पिंजरों में ही रहना चाहिए
बड़े से बड़े पिंजरे तो बने हैं उनके लिए
छोटे से छोटे और सुन्दर से सुन्दर
जिनमें वे रह सकते हैं सुरक्षित
मंदिरों-मस्जिदों में बना सकते हैं खोते
जहाँ शिकारी नहीं आते मुल्ला-साधुओं के सिवा

उन्हें रहना चाहिए
पुराने किलों, गुफ़ाओं और गुहान्ध अन्धेरों में
जहाँ हवा और रौशनी भी नहीं पहॅुंचती
उन असूर्यमपश्या अन्धेरों की संरक्षित जगहों पर
उन्हें कोई ख़तरा नहीं है
वे सुरक्षित रहेंगे और जीवित भी ।

मगर मैं क्या करूँ
हम हवा के पखेरू हैं

हमें उड़ते हुए परिन्दे ही पसन्द हैं
ख़तरों के बावजूद
रोशनी स्वाद और उड़ान के लिए
हवा में पंख मारते परिन्दे
किलकारी भरते
रंगों और चहचहों से
माहौल को ख़ुशगवार करते

हम हवा के पखेरू हैं
यह हमारा पागलपन ही सही
और इसीलिए हम चाहते हैं कि
सारे शिकारियों को गोली मार दी जाए
सर क़लम कर दिए जाएँ सारे बहेलियों के
सारे बलात्कारियों को फाँसी पर लटका दिया जाए
सभी परकतरों को सूली पर चढ़ा दिया जाए

हमें उड़ते हुए पंछी पसन्द हैं
हमें परवाज़ पसन्द है
हमें स्वाद पसन्द है
हमें अपने पेड़ और आसमान पसन्द हैं

हमें पसन्द है अपनी आज़ादी !