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हाँ, यहाँ आकाश / कुमार रवींद्र

हाँ, यहाँ
आकाश बिलकुल पास में है
 
दिख रही है बर्फ
तारे भी अँधेरे में
इधर खिड़की पार
आ रही है कहीं नीचे से
किसी संतूर की झंकार
 
और
सोते पर बना पुल पास में है
 
महानगरी से निकलकर
आए हैं हम
दूर हैं सब शोर
यहाँ जो पगडंडियाँ हैं
उम्र का है
वहीं अंतिम छोर
 
साँस जो
हो रही आकुल, पास में है
 
उधर हैं सप्तर्षि बैठे
झील तट पर हाथ जोड़े
और उनके ठीक नीचे
चीड़ वन हैं धुंध ओढ़े
 
बह रही
जो नदी छुलछुल, पास में है