Last modified on 3 अगस्त 2010, at 01:01

हाँ ! सच प्रिये / जय छांछा

अंधेरे की ख़ुशबू और रंग
प्रेमियों को सबसे प्रिय है
कोई कुछ भी कहे
सतही अनुमान से शुरू होता है और
अदृश्य गहराई में रहना चाहता है प्रेम ।

प्रेम में बीतने वाले दिनों से
आने वाली साँझे प्रिय होती हैं
इसलिए ज्ञानी सुनाया करते हैं
उजले दिनों से ज़्यादा
अँधेरी सांझों में आकार पाता है प्रेम ।

प्रेम और अंधेरे में संबंध है गहरा
इसलिए अंधेरे के बिना प्रेम हो ही नहीं सकता
ऐसा बताते हैं भुक्तभोगी
आकारहीन उजाले में
साधारणत: प्रेम अपना प्रमाण छोड ही नहीं पाता ।

हाँ ! सच है प्रिये
पहली बार तुमसे मिलने पर मुझे
कभी-कभी लगा कि मुझे मोतियाबिंदू हो गया है और
फिर धीरे-धीरे पूरी चेतना ही खोने लगी जैसे
वैसे तो अनुभवी भी यही कहा करते हैं
क्योंकि प्रेम है ही अंधा और
अंधेरे, विश्वास और सहमति में खिलता और बचता है प्रेम ।

मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला