Last modified on 16 अक्टूबर 2013, at 13:47

हांसता लोग / प्रमोद कुमार शर्मा

हांसता-हांसता
अचाणचकै चुप क्यूं हो ज्यावै लोग
घणी देर तांई
इकलग क्यूं नीं सकै हांस।

सोचूं:
स्यात हांसता-हांसता
दीख ज्यावै
वानै आपरौ ई चै‘रौ
जिकै नै देखण री
नई हुवै वां मांय
हिम्मत।