(1)
सारे सम्बन्ध
वासनामय नट
नचाये रहे
(2)
कन्या अपनी
या हो कोई परायी
हो मनभाई
(3)
ढका ढकाया
सब कुछ छिपाया
खुला है तन
(4)
आँख मूँदके
पीते हैं हलाहल
कैसा सकून?
(5)
पीड़ा के पेड़
कैक्टस अम्बार
हार शृंगार
(6)
युग पलटा
अब देखो घुँघरू
नये नकोर
(7)
पाप-पुन्न की
अपनी परिभाषा
आशा ही आशा