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हाइकु सुरंगमा यादव / कविता भट्ट

1
था व्यग्र सिन्धु
लहरों का नर्तन
समझा जग।

सिंधु बिचैन
लैरू कु नाच ये तैं
सम्झि संसार
2
हो रही रात
सुप्त व्यथा की भोर
हो रही साथ।

हुणि च रात
सेंयीं खौरी बिन्सरी
हुणी दगड़ा
3
यादों में खोई
बिन बोले सुन लूँ
कागा की बोली।

खुद माँ हर्च्युं
बिन बोल्याँ सुणि ल्यौं
कागै कि बोलीं
4
रखा सँभाल
रूमाल में लिपटा
तुम्हारा प्यार।

धौरी संभाळि
रुमैल माँ लपेट्यूँ
तुमारी माया
5
स्वर्णिम धूप
लहरों पे बिखरी
दोनों निखरीं।

सोनु सि घाम
लैरु माँ पड़ी झूळ
द्वी स्वाँणा ह्वेगी
6
प्रेम नगीना
मन की अँगूठी में
सजा रखना।

माया कु मिन्नाँ
मनैं कि ईँ गुँठि माँ
सजै राखी वा
7
टूटा दर्पण
तोड़ता नहीं पर
सत्य का प्रण।

टूटि गे ऐना
तोड़द्दु नीं च पर
सच्चै पर्तिग्याँ
8
तुम जो आए
सुगंध ने आकर
दे दी दस्तक।

तुम जु ऐंय्याँ
खुसबो न ऐई कि
सुणै सबद
9
वक्त का पंछी
पल में चुग गया
खुशी के दाने।

बग्त कु पग्छि
घड़ि माँ टुकरै गि
खुसी का दाँणा
10
मेघ दुशाला
उड़ा ले चली हवा
निकला चाँद।

बादळौ पाँख्लू
उड़ै क लिग्गी हवा
निकळी जून
11
मन- बगिया
कलरव करते
यादों के पंछी।

मन सग्वाणु
चुँच्याट करदन
खुद का पग्छि
12
नभ के गाल
उषा करे ठिठोली
मले गुलाल।

द्यौरै गल्वड़ी
बिन्सरी कि मजाक
लपोड़ी रंग
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