कविता नईं
चुटकला घड़ थूं
मंचां जम‘सी
हवा रो हाथ
छुवै बादळी डील
चमकै बीज
रमतियां रा
रंग-रूप तो जुदा
माटी तो अेक
कविता नईं
चुटकला घड़ थूं
मंचां जम‘सी
हवा रो हाथ
छुवै बादळी डील
चमकै बीज
रमतियां रा
रंग-रूप तो जुदा
माटी तो अेक