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हाइकु 163 / लक्ष्मीनारायण रंगा

हर नारी में
बसी है सै देवियां
जै पैछाणां तो


घर घर में
मिलै है उग्रसेन
पूतां रै पाण


लुगाई तो है
सावण री बादळी
झुरै‘र झुरै