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हाइकु 170 / लक्ष्मीनारायण रंगा

शेषनाग भी
डरपै है आज रै
काळिंदरा सूं


किण-किण रो
राम करै उद्धार
अहल्यां घणी


सोनमिरगा
चर रैया सगळी
भारत भोम