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हाइकु 175 / लक्ष्मीनारायण रंगा

ऊमर घणी
गुजार दी रिगस
छोड कांचळी


कान्हा समझ
प्रीत-रीत री पीड़
झुरै गोपियां


फूल सूख‘र
नीं करै पछतावो
बांटै सुगंध