21
घने थे पत्ते
मौसम जो बदला
वे झर गए।
22
कड़ी थी धूप
सिर पर ओढ़ ली
याद चुनरी।
23
यादों के पन्ने
आँसू से गीले हुए
तो भी न फटे।
24
छूटी जो गली
अब लौट के आए
ढूँढे न मिली।
25
याद बन के
मन में रहा ज़िन्दा
प्यार तुम्हारा।
26
मैं इंसाँ बना
आँखों में आँसू आए
मुद्दतों बाद।
27
प्रकृति परी
फेरे जादू की छड़ी
बिखरे रंग।
28
काँपता चाँद
जाने कहाँ दुबका
पूस की रात।
29
कम्बल ओढ़े
ठिठुरता-काँपता
सूर्य झाँकता।
30
पूस की रात
गरीब के पेट में
आग जलती।
31
धरा ने ओढ़ी
कोहरे की चादर
अभी सोने दो।