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हाइकु 58 / लक्ष्मीनारायण रंगा

झुक जावैला
आंधी अर तूफाण
पग तो उठा


प्रकृति बिना
पुरूस खुद रै‘वतो
सदा निसंग


जद भी बणै
धर्म हथियार, तो
मरै मानखो