Last modified on 26 जुलाई 2018, at 22:08

हाइकु 83 / लक्ष्मीनारायण रंगा

ओ जगत है
रात भर बसेरो
थारो न म्हारो


ओ समंदर
उतार लायो चांद
धरती माथै


कित्ता बस्या है
मिनख में मिनख
खुद नीं जाणै