रात - बारह पहियों वाली गाड़ी
गुजरती है लोगों के स्वप्नों को
कंपकंपाते हुए.
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कुहरे में गुनगुनाहट.
स्थल से दूर मछली पकड़ने की एक नाव
-- लहरों पर ट्राफी.
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बाल्कनी पर
खड़ा हुआ हूँ सूर्यकिरणों के एक पिंजरे में
इन्द्रधनुष की तरह.
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सूर्य उतर आया है नीचे
हमारी परछाईयाँ गोलियथ हैं
शीघ्र ही सब कुछ परछाईं होगा.
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अन्धकार से जन्मा.
मैं मिला एक बहुत बड़ी परछाईं से
एक जोड़ी आँखों में.
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जाओ, वर्षा की तरह शांत
मिलो सरसराती हुई पत्तियों से
सुनो क्रेम्लिन की घंटियों को !
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जगमगाते शहर :
गीत, गल्प, गणित --
मगर अलग तरह से.
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जड़वत विचार, मानो
रंगीन पत्थरों की पच्चीकारी
राजमहल के प्रांगण में.
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निराशा की दीवार...
इधर-उधर मंडराते कबूतर
बिना चेहरों वाले.
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झूलते बगीचों वाला
एक लामा मठ.
युद्ध-दृश्यों के कुछ चित्र.
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नवम्बर का सूरज --
तैरती हुई मेरी विशाल छाया
मरीचिका बनती हुई.
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वे मील के पत्थर, हमेशा
कहीं जाते हुए. सुनो
-- एक कबूतर की पुकार.
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मृत्यु झपट्टा मारती है मुझपर.
मैं एक समस्या हूँ शतरंज में.
उसके पास समाधान है.
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मूर्खों के पुस्तकालय की
आलमारी में पड़े हुए
अनछुए धर्मोपदेश.
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देखो मैं कैसे बैठा हुआ
जैसे जमीन पर खींच लाई गई डोंगी.
मैं प्रसन्न हूँ यहाँ.
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वीथियाँ चलती हुईं दुलकी चाल
सूर्यकिरणों की लगाम से
किसी ने पुकारा क्या ?
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कुछ घटित हुआ.
चंद्रमा ने प्रकाश से भर दिया कमरा.
ईश्वर जानता था इस बारे में.
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छत टूट गई
और मृत लोग देख सकते हैं मुझे
देख सकते हैं मुझे. वह चेहरा.
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वर्षा की सनसनाहट सुनो.
ठीक उसके भीतर पहुँचने के लिए
मैं बुदबुदाता हूँ एक राज.
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स्टेशन के प्लेटफार्म का दृश्य.
कितनी अप्रत्याशित शान्ति --
यह भीतर की आवाज है.
(अनुवाद : मनोज पटेल)