यहीं आस-पास कहीं
रहते हैं शिव
नदी के संग-संग
बहते हैं शिव
सोनपुरी पर्वत के आर या पार
जुड़कर वह बैठा है
गौरा के संग
अर्धनारीश्वर का
वीर्य विस्तार
"पब्बर" बन बहता है
जिसका अभिसार
सुन मेरे मन
भोला न बन
न ही इस भोले को
भोला तू जान
लौटा अभ्यागत जो
कल तेरे द्वारे से
वह ही तो नहीं था
कहीं भोला चालाक.....
जाने कब मिल जाए
कुछ दूरी साथ चले
वह तेरे संग
रखना तू ध्यान
उसकी पहचान
नकटों कनकट्टों की
संगत वह करता है
पारो के प्रेम की
चिलमें भी भरता है
बूटी की मस्ती में-अपनी ही बस्ती में।
घट-घट में घटता है
गाँव के लाला से
फिर भी वह लुटता है
बाबा भणडारी
जो भोला भण्डारी है
हर कोई जिसको
कहता है शिव
यहीं आस-पास कहीं
रहता है शिव
नदी के संग-संग
बहता है शिव
हाटकेश्वर शिव = शिमला से 100 किलोमीटर दूर
हाटकेश्वरी(पार्वती) नामक एक मंदिर है।