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हाट और बाज़ार / रंजना गुप्ता

हाट और बाज़ार की
ये सँकरी सी वीथियाँ
जल रहीं इनसानियत
की खेतियाँ

झूठ और पाखण्ड की सँजीदगी
मज़हबी उन्माद की कुछ बानगी
रक्त लथपथ
गीत की हैं पँक्तियाँ

स्वाद तीखा सा कसैला सत्य का
क़त्ल युग के एक पूरे कथ्य का
मोल कौड़ी बिक
रही हैं हस्तियाँ

धर्म ईश्वर चुन दिए दीवार में
औलिया जीसस खड़े लाचार से
आस्था की उड़
रही हैं धज्जियाँ

प्रश्न भाषा जाति का रँग का नहीं
दब चुके हैं बर्फ़ में रिश्ते कही
उठ गईं
सम्वेदना की अर्थियाँ