जन्म-दिवस से कुछ दिन पहले 
हाथी ने इस बार-
अपना पहला कुर्ता सिलवाने 
का किया विचार। 
बंदर कपड़े वाले से ले 
कपड़े के दस थान, 
पहुँच गया वह फौरन 
चूहे दर्जी की दूकान। 
बोला-’भैया चूहे, सी दो 
सुंदर कुर्ता एक, 
पहन उसी को, जन्म-दिवस पर
काटूँगा मैं केक’। 
चूहा बोला- ‘उड़ा रहे क्यों 
दादा, आप मज़ाक?
मैं नन्हा, कैसे सी सकता
तम्बू-सी पोशाक!’
       [धर्मयुग, 5 जून 1983]