शरीर में जान से अधिक
ज़रूरी हो गई है
गाड़ियों के पहियों में हवा !
उनकी हवा निकल गई तो
समझो मनुष्य की ज़िन्दगी ही रुक गई ।
पहले सभी काम-धंधे होते थे हाथ-पैरों से
खेती-बाड़ी में पैदा किया जाता था अनाज
गाय-बच्छियों को पाल-पोसकर मिलता था दूध-घी
जंगल से लाते थे लकड़ियाँ ईंधन के लिए
नमक के अतिरिक्त
सब कुछ हाथ-पाँव ही पैदा करते थे ।
आज अनाज पैदा होता है- बनिये की दुकान पर
सब्जी मण्डी में
और दूध देती हैं थैलियाँ ।
गाड़ी, गैस, बिजली, पानी, टेलीफोन, कम्प्यूटर के
हाथों में आज हमारे हाथ-पैर
ये रुक गऐ
फूल जाते हैं हमारे हाथ-पैर
आगे न जाने क्या-क्या बनेंगे हमारे हाथ-पैर
जिनके बिना हम
हाथ-पैर होते हुऐ भी
लूले-लंगड़े हो जाऐंगे ।
मूल कुमाउनी कविता
हात खुट
आंग में ज्यान है ज्यादे
जरूरी हैगे
गा्ड़िक घ्वीरों में हा्व !
उनरि सांस मुजि ग्येई....
समझो मैंसेकि ज्यूनि`ई थमि गे।
आज मैंसा्क हात-खुट जै गा्ड़िक घ्वीर बंड़ि ग्येईं ।
पैली सब काम धंध हुंछी हात-खुटोंल
खेति-बाड़ि में पैद करी जांछी अनाज
गोरु-बा्छ सैन्ति मिलछी दूद-घ्यू
बंण बै ल्यूंछी लाका्ड़,
नूंण बका्य
सब पैद करछी हात-खुटै ।
आज अनाज पैद हूं-बंणियैकि दुकान में
साग मण्डि में,
दूद दीं थैलि ।
गाड़ि, गैस, बिजुलि, पांणि, टेलिफून, कम्प्यूटरा्क
हात में छन हमा्र हात-खुट
यं रुकि ग्या्या
फुलि जानीं हात-खुट
अघिल जांणि कि-कि बणांल हात-खुट
जना्र बिना हम
छन हात-खुटै
लुली जूंल ।