कितने लोग मेरी तरह
सुबह उठ कर इस डर में
अख़बार देखते होंगे
कहीं कोई बम न फटा हो
किसी जगह हमला
तो नहीं कर दिया
कहीं आंतकवादियों ने
हर हादसे के बाद लगता है
मुझे घूरती हैं मुझे कुछ नज़रें
बातें कुछ सर्द हो जाती हैं।
कितने लोग मेरी तरह
सुबह उठ कर इस डर में
अख़बार देखते होंगे
कहीं कोई बम न फटा हो
किसी जगह हमला
तो नहीं कर दिया
कहीं आंतकवादियों ने
हर हादसे के बाद लगता है
मुझे घूरती हैं मुझे कुछ नज़रें
बातें कुछ सर्द हो जाती हैं।