पस्त हुआ, ध्वस्त हुआ,
हार नहीं मानी ।
जूझा हूँ — मौसम से
कुरसी के बाज़ से
माँगे दो फूल नहीं
दम्भी ऋतुराज से
पतझड़ में जीया —
देवदारू स्वाभिमानी ।
कितना कुछ टूटा है,
छूटा है राह में
आएगा जो भी, वह
झाँकेगा थाह में
मुझ में ही पाएगा
दीन और दानी ।