Last modified on 27 अगस्त 2020, at 23:02

हालत बेहाल हुई / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

भाप-सी निकलती है
हालत बेहाल हुई,
आता है अब मन में।
चड्डी बनियान पहन,
दौड़ पड़ें आंगन में।

गर्मी है तेज बहुत,
शाम का धुंधलका है।
हवा चुप्प सोई है,
सुस्त पात तिनका है।

चिलकता पसीना है,
आलस छाया तन में।
पंखों की घर्र घर्र,
कूलर की सर्राहट।
ए.सी. न दे पाया,
भीतर कुछ भी राहत।
मुआं उमस ने डाला,
घर भर को उलझन में।
आंखें बेचैन हुईं,
सांसें अलसाई हैं।
चैन नहीं माथे को,
नींदें घबराई हैं।
भाप-सी निकलती है,
संझा के कण-कण में।