अभी हाशिये पर इंतज़ार में हूँ
सारी साजि़शों के बवंडर गुजर जाएँ
भरोसा नहीं है कुछ रकीबों का कि
वे अपनी फितरत से कभी बाज आएँ
हाथों में उनके जाम भी है, खंजर भी
हम बेकार में क्यूँ अभी कत्ल हो जाएँ
सारी उम्र अभी बाकी पड़ी है ऐ कबीर
चलो यार की गली मे दीदार कर आएँ
जमाने आएँगे फिर से बहारों के
मुश्किलों के ये पल यार के संग बिताएँ
वो भी हसीन होंगे एक दिन कसम से
उनको भी यार मिले चलो माँगें दुआएँ!