रंगीली साई ते तूँ रँग भरी है। सुगड़ सुंदर सहेली गन भरी है।।
लटकना बिजली निमने<ref>की भाँति</ref> उस सुहावै। वो हिन्दी छोरी बहु छंद<ref>चतुराई</ref> शहपरी<ref>परियों की रानी</ref> है।।
चँदर-मुख सोहन्याँ जब नाचत्याँ हैं। जो तनमें तूँ सुरँग जों परी है।।
सभी हूरा<ref>स्वर्ग की अप्सराएँ</ref> न आसै<ref>होंगी (पंजाबी)</ref> आज तुज सम। कि तूँ-बालां में सब अंबर<ref>एक सुगंधित रत्न</ref> भरी है।।
उपजता है तेरे मुखते जे शाबी<ref>जवानी</ref> ओ शाबीते सो जोहरा<ref>बृहस्पति</ref> मुश्तरी<ref>शुक्र</ref> है।।
नबी सदके रिझाए कुत्ब शहकूँ। तोसकियाँ में तूँ जैसी शहपरी है।।
शब्दार्थ
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