न सुर न कोई आलाप
न आहट न पदचाप
धीमे से हिमपात ----चुपचाप-चुपचाप
गौर हिमानी उतरी नभ से
खुली पैंजनी कोमल पग से
श्वेत पाँखुरी थाप--चुपचाप-चुपचाप
सोया सूरज ओट हिमालय
धूप पुजारिन गई शिवालय
किरणें करतीं जाप ---चुपचाप-चुपचाप
निस्वर–नीरव बहा पवन
ठिठुरा-ठिठका हीरक जल कण
हरता धरती ताप –चुपचाप –चुपचाप
जोगिन हो गईं दिशा-दशाएँ
आँख मूँद कुल देव मनाएँ
मौन हुआ संलाप –चुपचाप-चुपचाप