हिमवंत (कविता का अंश)
बैठे हैं गंगा के तट पर
शिला वनों में बादल
उन में वज्र छिपाकर
कभी कभी हंस पडती
बिजली जाने क्यों हो चंचल
चंद्र प्रभा में सुन्दर
(हिमवंत कविता का अंश)
हिमवंत (कविता का अंश)
बैठे हैं गंगा के तट पर
शिला वनों में बादल
उन में वज्र छिपाकर
कभी कभी हंस पडती
बिजली जाने क्यों हो चंचल
चंद्र प्रभा में सुन्दर
(हिमवंत कविता का अंश)