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हिम की मार / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

63
आँधी उमड़ी
गरीब का छप्पर
दूर ले उड़ी ।
64
तेरा मिलना
सूखे पतझर में
फूल खिलना।
65
कंटक -पथ
साथ नहीं सारथी
चलना ही है।
66
सदा वन्दन
तुमसे है ज्योतित
मेरा जीवन!
67
हिम की मार
कोंपल है गुलाबी
झेल प्रहार।
68
ये हरी दूब
शीत को ओढ़कर
खुश है खूब।
69
धूप से डरा
हिम को भी छूटा है
आज पसीना
70
प्राण मिलते
तुम हो संजीवनी
शब्द- ऋचा से।
71
उजली भोर
बिखर गई रुई
चारों ही और।
72
तू मेरा हीरा
शब्दब्रह्माणि मेरी
संजीवनी तू!!