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हिलि-मिलि गाइये लेहो / चन्दरदास

॥सोहर॥

हिलि-मिलि गाइये लेहो, हरि-गुण गाइये लेहो न।
ललना रे! जेहो विधना लिखल लिलार,
सेहो कौन मेटतै ए॥1॥
पुरब जनम केरो पातक, सेहो फलल-फूलल ए।
ललना रे! जम मरण केर विपति से,
कैसे तोर छुटतै ए॥2॥
कहाँ से आयली एक डगरिनी, छूरिया चलावली ए।
ललना रे! भैया मोर निठुर अपार से,
जननी भेल बैरिन ए॥3॥
बाबा मोर धावल आयल, छड़ी चमकावल ए।
ललना रे! पापी पकरै यमराज से,
धरमी के बचाएल ए॥4॥
‘चन्दर दास’ सोहर गावल, गावी के सुनावल ए।
ललना रे! भलि ले हो श्रीगुरु के नाम से,
जनम नगिचायल ए॥5॥