हिले-डुले
कर्णफूल
हिले पात तन के !
दिशि-दिशि
बन्ध गए नयन
गरजे घन मन के !
ठगे खड़े
खग-मृग
सज गए साज वन के !
वासन्ती
विहँसी
खिल गए प्राण जन के !
बन्द कोष
खुले
कण बिखरे यौवन के !
शत-शत गत
वर्ष हुए
दास एक क्षण के !