हीरालाल शास्त्री का जन्म 24 नवम्बर, 1899 को जयपुर जिले में जोबनेर के एक किसान परिवार में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा जोबनेर में हुई। 1920 में उन्होंने साहित्य-शास्त्री की डिग्री प्राप्त की। 1921 में जयपुर के महाराज कालेज से बी.ए. किया और वे इस परीक्षा में सर्वप्रथम आए।
हीरालाल की बचपन से ही यह उत्कट अभिलाषा थी कि वे किसी गाँव में जाकर दीन-दलितों की सेवा सेवा में अपना सारा जीवन लगा दें। हालाँकि 1921 में वे जयपुर राज राज्य सेवा में आ गए थे औप बड़ी तेजी से उन्नति करते हुए गृह और विदेश विभागों में सचिव बने थे, फिर भी 1927 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। प्रशासनिक सेवा के दौरान उन्हेंने बड़ी मेहनत, कार्यकुशलता और निर्भीकता से काम किया था।
1929 में हीरालाल शास्त्री ने अपने बचपन का संकल्प पूरा करने के उद्देश्य से जयपुर से 45 मील की दूरी पर स्थित वनस्थली नामक एक दूरवर्ती और पिछड़े गाँव को चुना और वहाँ जीवन कुटीर की स्थापना की। उन्होंने वहाँ निष्ठावान सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक दल को प्रशिक्षित किया और गाँवों के पुनर्निर्माण के लिए एक कार्यक्रम के कार्यान्वयन का प्रयास किया।
यही कार्यकर्ता बाद में राजपूताना की कई रियासतों में राजनैतिक जागरुकता के अग्रदूत बने। 1937 में उन्हें जयपुर राज्य प्रजा मंडल का पुनर्गठन करने का भार सौंपा गया। वे इस मंडल के दो बार महामंत्री और दो बार अध्यक्ष चुने गए। इस प्रकार उन्हें स्वयं राजनैतिक क्षेत्र में उतरना पड़ा। 1939 में नागरिक स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए उन्होंने प्रजा मंडल के सत्याग्राह का नेतृत्व किया और उन्हें छह महीने की कैद हुई। 1947 में उन्हें अखिल भारतीय देशी राज्य प्रजा परिषद् का महामंत्री बनाया गया। उसी वर्ष वे संविधान सभा के लिए चुने हुए।
1948 में जयपुर रियासत में प्रतिनिधि सरकार बनने पर हीरालाल शास्त्री ने उसके मुख्यमंत्री का कार्यभार सँभाला और 30 मार्च, 1949 को जब राजस्थान राज्य का निर्माण हुआ तो वे उसके प्रथम मुख्यमंत्री बने। विभिन्न रियासतों को मिलाने और आज के प्रभावशाली प्रशासन का रुप देने के अत्यंत कठिन कार्य की जिम्मेदारी उन्हीं पर आई। उन्होंने यह जटिल कार्य थोड़े ही समय में पूरा कर लिया। 5 जनवरी, 1951 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया और बाद में दूसरी लोकसभा के सदस्य बने।
हीरालाल शास्त्री ने वनस्थली विद्यापीठ की स्थापना की थी। इस विद्यापीठ ने आज नारी शिक्षा की एक प्रमुख राष्ट्रीय संस्था का रुप ले लिया है।
हीरालाल शास्त्री का देहावसान 28 दिसम्बर, 1974 को हुआ। पंडित हीरालाल शास्त्री बड़े दूरदर्शी और जनप्रिय नेता थे। वे अपने विचार व्यक्त करने में स्पष्टवादी और निर्भिक, सच्चे हृदय से भारतीय तथा निःस्वार्थ समाजसेवी थे। शक्तिशाली, सुसंगठित और प्रगतिशील राजस्थान की नींव डालने का अधिकांश श्रेय उन्हीं को है।
डाक-तार विभाग ने पंडित हीरालाल शास्त्री के सम्मान में एक स्मारक डाक-टिकट जारी किया है।