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हीला और हवाला दे / विनय मिश्र

हीला और हवाला दे ।
आख़िर कौन उजाला दे ?

मैं अमीर हूँ, जीने को
मुझको देश निकाला दे ।

ख़ुशियाँ उल्टे पाँव गईं
कोई ज़ख़्म निराला दे ।

मन में छुरी छुपाए जो
बाहर कंठी माला दे ।

मैं दुनिया से क्यूँ माँगूँ
जो दे, अल्ला ताला दे ।

गई रात की बात गई
अब दिन नया रिसाला दे ।