हुए सहस्त्रों वर्ष
चल रहा अपना कर्म पुनीत...
तमसावृत्त धरा को करता
ज्योतिर्मय कवि-गीत।
कवि ने कहा कदापि नहीं यह –
नहीं बुढ़ापा, नहीं ज्ञान है
और न सम्भव मृत्यु नहीं है,
उससे मनुज अजान है
मूल रूसी से अनुवाद : रामनाथ व्यास ’परिकर’
और अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Анна Ахматова
Наше священное ремесло
Существует тысячи лет...
С ним и без света миру светло.
Но еще ни один не сказал поэт,
Что мудрости нет, и старости нет,
А может, и смерти нет.
25 июня 1944
Ленинград