नहीं नहीं हम स्वच्छंद नहीं हैं
आज़ाद भी नहीं
मन मानी करने के लिए।
जन्म के दिन ही लिख दिया जाता है
सम्पूर्ण जीवन का वृत्तांत
जड़े रहते हैं हम उस चौखटे में
हिलडुल भी नहीं सकते।
जो उसकी भाषा पढ़ना जानते हैं
बता देते हैं दस वर्ष के बाद
क्या घटना घटेगी।
हमारी रास उसके हाथ में है
जो हमारी पीठ पर बैठा
नियंत्रित कर रहा है हमारी
चाल हमारी दिशा हमारा मोह
हमारी इच्छा हमारी तृष्णा
हुकुम के गुलाम हैं हम
और यह उसका करिश्मा है
कि हम जी रहे इसी भ्रम में
कि हम अपने मन के मालिक हैं
किसी की गुलामी नहीं करते।
स्वच्छंद कोई नहीं होता।
हाथी पर अंकुश
ऊँट पर नकेल
करते है नियंत्रण।
अन्जाम भी अपने
हाथ में होता नहीं
हार जीत हंसना रोना
उदासी सब उसी के हाथ
वही रंग भरता है हमारी दृष्टि में
कान में बजता हैं उसी का संगीत॥