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हुतात्मा डॉ. मुखर्जी / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

आज खुला इतिहास-पृष्ठ फिर उस महान बलिदानी का।
अंकित है हृत्पट पर गौरव, जिसकी अमर कहानी का॥
प्रकट हुआ जो वीर विलक्षण प्रतिभा का वरदान लिये।
वाणी में वर ओज, कंठ में देश-प्रेम का गान लिये॥
टोक न कोई सका, गरजती जिसकी उग्र जवानी को।
रोक न कोई सका कभी जिसकी निर्बाध रवानी को॥
तूफानों में भी जिसने, छोड़ी कर से पतवार नहीं।
रहा जूझता संघर्षों से मानी मन में हार नहीं॥
सिंह-गर्जना से जिसने था द्रोही दल को ललकारा।
‘देश अखण्ड रहे मेरा’ था एक यही जिसका नारा॥
नन्दन वन पर आँख लगी जब देखी उन हत्यारों की।
ज्वाला बन कर भड़क उठी तब आग दबे अंगारों की॥
निकल पड़ी हुंकार अधिक अब रख सकते हैं धीर नहीं।
प्राण भले देने हों पर जाने देंग कश्मीर नहीं॥
मची प्रबल हलचल प्राणों में, पशुता को झकझोर चला।
कमर बाँध कर वीर उसी दम काश्मीर की ओर चला॥
लक्ष्य-द्वार तक ही पाया था पहुँच सिंह वह मतवाला।
देख दूर से ही दुष्टों ने पकड़ पींजड़े में डाला।
हाय! वहीं बन्दीगृह में उस नेता का अवसान हुआ।
देशभक्त उस महावीर के प्राणों का बलिदान हुआ॥
माँ का सच्चा पूत खुशी से सिर पर संकट झेल गया।
वीरों का बलिदान बन्धुओ! कभी न खाली जाता है।
रक्त शहीदों का निश्चय ही रंग एक दिन लाता है॥
धन्य-धन्य श्यामा प्रसाद! हे अखण्डता के अभिलाषी।
युग-युग तक यश-गान तुम्हारा गायेंगे भारतवासी॥
दो हमको वह शक्ति, देश का सुयश धरा पर व्याप्त करें।
चलें तुम्हारे पद चिह्नों पर सदा सफलता प्राप्त करें॥