हुस्न-ए-फ़ितरत की आबरू मुझ से
आब ओ गिल में है रंग ओ बू मुझ से
मेरे दम से बिना-ए-मै-ख़ाना
हस्ती-ए-शीशा-ओ-सुबू मुझ से
मुझ से आतिश-कदों में सोज़ ओ गुदाज़
ख़ानक़ाहों में हाए ओ हू मुझ से
शबनम-ए-ना-तावाँ सही लेकिन
इस गुलिस्ताँ में है नुमू मुझ से
इक तिगापूए दाइमी है हयात
कह रही है ये आब-जू मुझ से
ताक़त-ए-जुंबिश-ए-नज़र भी नहीं
अब हो क्या शरह-ए-आरज़ू मुझ से