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हृदय का शिवालिक / शिरीष कुमार मौर्य

दराँतियों पर धार तो है
पर हेमंत ऋतु में घास से विहीन खल्वाट हैं पहाड़
शिवालिक की सुखद गर्मियाँ
गई ऋतुओं की बात है
दरअसल मैं अवसाद में न होता तो कहता
आगामी ऋतुओं की बात है

हेमंत ऋतु में पश्चिमी तट पर है समुद्री तूफ़ान
हेमंत ऋतु में भाबर के माथे पर कुछ बादल हैं

मै सोचता हूँ
क्या सचमुच हेमंत ऋतु में हेमंत ऋतु के अलावा
कुछ नहीं है

देखता हूँ
कुछ ही दूरी पर शिशिर खड़ा है
ठिठुरता
अब ये हम मनुष्यों पर है कि
उसे कुछ गर्म बनाएँ
मैदानों की ओर न देखें
हृदय के प्रिय शिवालिक पर ही
एक आग जलाएँ
फूलों के बारे में गाया जो

ऋतुगीत था
आग के बारे में गाएँगे जो
रितुरैण होगा।