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हे! कविते / नवीन दवे मनावत

है! कविते
तुम्हारे विचलित होने की सीमा कितनी है?
संवेदना को उकेरने का मर्म कितना है
और
कितनी है तुम्हारी आत्मा अधीर
मैं जानना चाहता हूँ
क्योंकि मैं तुम्हे लिखता हूँ।

कविता क्षण भर मौन रह बोली
मेरा विचलित होना जानना चाहते हो
तो प्रश्न करो सूरज से!
संवेदना उकेरना चाहते हो
तो प्रश्न करो अश्रुओं से!
और
आत्मा की अधीरता का प्रश्न
तुम निश्चित रूप जानना चाहते हो!
तो धरती की रूह को स्पर्श करना
पर शायद असंभव हो तुम्हारे लिये!

यथार्थ में तुम कवि हो
तो स्पर्श मिलेगा संवेदना का
तथाकथित तो
स्पर्श मिलेगा विचलित होने का
अन्य हो तो
मिलेगा धैर्य का