यह युद्ध इतना विषम
नोचे इतने पंख
लूटते रहे मेरे दिन की परछाइयाँ
कुतरते रहे मेरी रात की पंखुरियाँ
चितकबरा लहू थूकता यह अंधकार
फिर भी छूटा वो कोना निपट अकेला
जहाँ बसे हैं विकट दुर्गुण मेरे खास।
यह युद्ध इतना विषम
नोचे इतने पंख
लूटते रहे मेरे दिन की परछाइयाँ
कुतरते रहे मेरी रात की पंखुरियाँ
चितकबरा लहू थूकता यह अंधकार
फिर भी छूटा वो कोना निपट अकेला
जहाँ बसे हैं विकट दुर्गुण मेरे खास।