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हेमन्त / महेन्द्र भटनागर

भीगी-भीगी भारी रात,
नींद न आती सारी रात !

घोर अंधेरा चारों ओर
दूर अभी तो लोहित भोर
थमा हुआ है सारा शोर
ऐसे मौसम में चुप क्यों हो,
कहो न कोई मन की बात !

कुहरा बरस रहा चुपचाप
अतिशय उतरा नभ का ताप
व्योम-धरा का मौन मिलाप
ऐसे लमहों में पास रहो,
थर-थर काँपेगा हिम गात !

नीरवता का मात्रा प्रसार
तरुदल हिलते खेतों पार
जब-तब बज उठते हैं द्वार
खोल गवाक्ष न झाँको बाहर,
मादक पवन लगाये घात !