ई कातर प्राण, चतुरथीचान -
धरक धरि ध्यान रहय अनुखन
ई बेलक गात सजय नवपात
पड़य हे तात, अहींक चरण
मनक सभबात बनय जलजात
कि भऽ बरू जाउ एकातक आक
फड़य सभ मौन मनोरथ फूल
रहय अथबा बनिकऽ मरू खाक
करी सभदान, लिअ भगवान
उपस्थित दीन धथूर क मन
ई कातर प्राण, चतुरथीचान -
धरक धरि ध्यान रहय अनुखन
हे त्रिपुरारि, अहॉक दुआरि,
सुनी दिन राति भिखारि भिखारि
सुनू अबधूत ई दास अभूत
ने माङत आब कही पर चारि
हरू सभ दोष, भरू संतोष
करू उद्घोष - ‘‘ई हम्मर जन’’
ई कातर प्राण, चतुरथीचान -
धरक धरि ध्यान रहय अनुखन