उम्र भर करते रहे सब काम अपने आप
देह की कंबली उतारी आपने चुपचाप
छूट गये आपके सब ताप और संताप
इस विलय में है विसर्जित पुण्य सारे, पाप
जन्म भोगी! कर्मयोगी। हे पिता अपने
आपको प्रणाम।
स्वयं निर्मित्त, स्वयं निर्भर, श्रम के विश्वासी
निष्कलुष हृदय तुम्हारा, स्वयं प्रकाशी
सादगी की मूर्त्ति थे, स्वयं अनुशासी
ऊँचे आदर्शों विचारों वाले सन्यासी
आपको प्रणाम!
सरलता संवेदना भरपूर हृदयागार
कल्याणकारी थी मनीषा और फैला प्यार
कड़े अनुशासन में पनपा आपका परिवार
औ विरासत में दिया उसको यही अधिकार
कल्याणकारी, परोपकारी हे पिता अपने
आपको प्रणाम
आँख का प्रकाश अब सूरज ने जा मिला
आप का आशीष स्वर वायु में जा घुला
आपका संकल्प सबका स्वपन बन पला
प्राण का संगीत सुन परिवार बढ़ चला
वीतरागी, अनुरागी, हे पिता अपने
आपको प्रणाम।