शंख फूँका साँझ का तुमने
जलाया आरती का दीप
आँचल को उठाकर
बहुत धीमे
और धीमे
माथ से अपने लगाकर
सुगबुगाते होंठ से इतना कहा –
हे साँझ मैया…
और इतने में कहा माँ ने –
बड़का आ गया
बहन बोली : आ गए भइया ।
और तुमने
गहगहाई साँझ में
फूले हुए मन को सम्भाले
हाथ जोड़े,
फिर कहा…
हे… साँझ… मैया…