हे सौम्य सूर्य! तू ऐसा अगर न होता
तो ऐसे दृग कैसे तुझ पर टिक पाते!
तम का पर्दा ही अगर सुलग उठता तो,
द्युति-कर तेरे, किस पर तस्वीर बनाते?
हे सौम्य सूर्य! तू ऐसा अगर न होता
तो ऐसे दृग कैसे तुझ पर टिक पाते!
तम का पर्दा ही अगर सुलग उठता तो,
द्युति-कर तेरे, किस पर तस्वीर बनाते?