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हैं अभी आए / श्याम सखा 'श्याम'

है अभी आए अभी कैसे चले जाएँगे लोग
हमसे नादानों को क्या और कैसे समझाएँगे लोग

है नई आवाज़ धुन भी है नई तुम ही कहो
उन पुराने गीतों को फिर किसलिए गाएँगे लोग

नम तो होंगी आँखें मेरे दुश्मनों की भी ज़रूर
जग-दिखावे को ही मातम करने जब आएँगे लोग

फेंकते हैं आज पत्थर जिस पे इक दिन देखना
उसका बुत चौराह पर खुद ही लगा जाएँगे लोग

हादसों को यों हवा देते ही रहना है बजा
देखकर धुआँ बुझाने आग को आएँगे लोग

हमको कुछ कहना पड़ा है आज मजबूरी में यों
डर था मेरी चुप से भी तो और घबराएँगे लोग

इतनी पैनी बातें मत कह अपनी ग़ज़लों में ऐ दोस्त
हो के ज़ख्मी देखना बल साँप-से खाएँगे लोग

कौन है अश्कों को सौदागर यहाँ पर दोस्तों
देखकर तुमको दुखी, दिल अपना बहलाएँगे लोग

है बड़ी बेढब रिवायत इस नगर की 'श्याम' जी
पहले देंगे ज़ख्म और फिर इनको सहलाएँगे लोग