(राग सोहनी-ताल दादरा)
हैं भरे भगवान मुझमें, नित्य भगवा लिये।
हैं भरे भगवान मुझमें, शाश्वती सा लिये॥
हैं भरे भगवान मुझमें, चेतना चिन्मय लिये।
हैं भरे भगवान मुझमें, ज्ञान शुचि अक्षय लिये॥
मैं सदा हूँ शोक-भयसे रहित अतिशय इसलिये।
मैं सदा हूँ सहज सुखके सहित अतिशय इसलिये॥
मैं सदा हूँ शान्त नित, निर्भ्रान्त अतिशय इसलिये।
मैं सदा हूँ पूर्ण, कोमल, कान्त अतिशय इसलिये॥